Friday, October 21, 2011

sharad ji gupta ka ek blog............

कुछ दिनों पहले की बात है मुझे अपने परिवार के साथ जम्मू के रघुनाथ मंदिर में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | सुना था कि यहाँ सबसे बड़ा शिवलिंग है और 33 करोड़ देवी देवता इस स्थल पर वास करतें हैं | काफ़ी उत्सुकता के साथ हमने अपना सामान क्लॉक रूम में जमा करवाया और मंदिर में प्रवेश किया | मुख्य द्वार के अंदर जाते ही हमें काफ़ी मंदिर दिखाई दिए, कहाँ जाएँ कुछ समझ नहीं आ रहा था | इतने में पीली धोती कुर्ता पहने एक सज्जन आए और हमें एक मंदिर में ले गये | मेरी धर्म पत्नी मेरे साथ थीं, पंडित जी ने हम दोनों का माथा मूर्ति के आगे झुकवाया और हमारे लिए भगवान से तरह-तरह की दुआएँ माँग डाली, कुछ मंत्र पढ़ने के बाद पंडित जी ने भगवान के चरणों में 501 रुपये की दक्षिणा चढ़ाने को कहा | हम दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लग गये |

"जल्दी करो बेटा काफ़ी लंबी लाइन है |" ललचाती हुई आवाज़ में पंडित जी ने कहा |

हमने भी अपनी श्रद्धानुसार पैसे चढ़ाए और निकल लिए | काफ़ी देर मंदिरों में पूजा करने के पश्चात हम अंतिम शिव मंदिर पहुँचे | एक ऐसा नज़ारा देखने को मिला जिसे देखकर शायद भगवान भी शर्मिंदा हो जाएँ | भगवान के नाम पर लोगों को सारे आम लूटा जा रहा था | एक ओर शिव शंकर की जय जयकार गूँज रही थी और दूसरी तरफ पंडित अपना धंधा चला रहा था | श्रद्धालुओं की भारी भरकम भीड़ थी और उसी भीड़ में एक व्यक्ति सपरिवार शिव दर्शन हेतु आगे आए |

"क्या करते हो", पंडित ने व्यक्ति के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा |

"मेरी दिल्ली में कपड़े की दुकान है", व्यक्ति दोनों हाथ जोड़ता हुआ बोला |

उसके इतना बोलने की देर थी कि पंडित ने फट से उसके और उसके परिवार के सभी सदस्यों के गले में हार डाल दिए | 4-5 रटे रटाये मंत्र पढ़े और 501 रुपये चढ़ाने को कहा | व्यापारी ने पैसे चढ़ाए और अपने आप को ठगा सा महसूस करता हुआ हमारे पास बैठ गया | अगली बारी एक लड़के की थी जिसकी उम्र यही कोई 21-22 साल रही होगी |

"क्या करते हो", पंडित ने फिर वही रटा रटाया सवाल दोहराया |

"स्टूडेंट हूँ"

पंडित ने एक मंत्र पढ़ा और 51 रुपये चढ़ाने को कहा | लड़का होशियार था, उसने 50 का नोट निकाला और दान पात्र में डालने लगा| पंडित ने जल्दी से उसे रोका और बोला, "पैसे शिवलिंग को छुआए जाते हैं और वहीं रखे जातें हैं, तब शिवजी उन्हे ग्रहण करते हैं "| लड़का भी कहाँ मानने वाला था उसने पैसे दान पात्र में ही डाले | उस क्षण तो पंडित की शक्ल देखने लायक थी |

लगभग दो घंटे तक हम यह सारा घटनाक्रम देखते रहे | उस पंडित ने इतने ही समय में लगभग 3-4 हज़ार रुपये कमा लिए थे | एक मन तो किया क्यों ना मैं भी धोती कुर्ता पहन कर, थोड़े से मंत्र सीख कर यह बिज़नस शुरू कर दूं | हींग लगे ना फटकारी, रंग भी चोखा |

यह हाल केवल किसी एक मंदिर का ही नहीं अपितु देश के अधिकांश तीर्थ स्थलों में यह देखने को मिलता है | यहाँ 501, वहाँ 1001, फलाँ कर्म में 101 करते-करते आदमी की जेब खाली हो जाती है | हरिद्वार में यदि कोई ग़रीब अपने किसी मृतक परिजन की अस्थियाँ बहाने ले गया हो तो उसे वापसी पर किराए तक के लाले पड़ जातें हैं | क्या पंडित जी जानते हैं कि सौ रुपये कमाने में कितना पसीना बहाना पड़ता है ? आज के वक्त में यह एक व्यवसाय बन चुका है | जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है | हमें अंधी आस्था को छोड़ समझदारी से काम लेने ज़रूरत है अन्यथा धर्म के ये ठेकेदार भगवान के नाम पर दोनों हाथों से हमें लूटते ही रहेंगे|

Tuesday, October 18, 2011

राष्ट्रवाद की नौका, आतंक की पतवार

मुंबई हमले में मारे गए महाराष्ट्र आतंक निरोधी दस्ते के मुखिया हेमंत करकरे के बारे में कहा जाता है कि अगर वो कुछ और दिन जी जाते तो बहुत से सफ़ेदपोश राष्ट्रभक्तों के चहरों पर पड़ी हुई नक़ाबें नुच जातीं और कुछ राष्ट्रवादी संगठनों के आतंकी कारनामे सामने आ जाते पर क्या किया जाए कि करकरे की मौत से इन सब पर पर्दा पड़ गया लेकिन हाल ही में राजस्थान आतंक निरोधी दस्ते की कार्यवाही से राष्ट्रभक्तों के देशद्रोही कारनामों की कलई खुलने लगी है.जिन आतंकवादी घटनाओं में मुसलमानों को फंसाने के पूरे प्रयास किए जा रहे थे उन सब मामलों में कुछ ऐसे चहरे सामने आये हैं जिन की रोटियां ही राष्ट्रवाद के चूल्हे पर पकती हैं. मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के नाम सामने आने के बाद अब इन्ही के नाम हैदराबाद,अजमेर और दिल्ली की जामा मस्जिद ब्लास्ट से जुड़ते नज़र आ रहे हैं.पुलिस ने आर एस एस के प्रचारकों को पकड़ कर उनसे उगलवाया है कि उन्हों ने किस तरह ब्लास्ट करके देश को साम्प्रदायिक दंगों की आग में झोंकने की साजिश रची थी?
आर एस एस और उसके चेले चांटों के नाम आतंकी घटनाओं में आने से साफ़ हो गया है कि राष्ट्रवाद का नाम लेने वाला ये दल किस तरह देश को तबाही के तंदूर में गिराने को बेताब है.सरकारों द्वारा जिस प्रकार ढील दी जाती रही उसका फ़ायदा उठा कर आज हालात ने ये रुख इख्तयार कर लिया है कि राष्ट्रवाद का ढोंग रचाने वाले दल आराम से आतंकवाद मचा रहे हैं और पुलिस व मीडिया मुसलमानों को इनका ज़िम्मेदार ठहराने में मसरूफ हैं.
जिन धमाकों में अभिनव भारत और आर एस एस के प्रचारकों के नाम सामने आ रहे हैं इनसब में मीडिया और पुलिस मुसलमानों को फंसाने की तय्यारी कर चुकी थी मीडिया ने बिना इन्तेज़ार किए हुजी को ज़िम्मेदार बता दिया था और पुलिस इस चक्कर में थी कि कैसे मुसलमान युवाओं के सर पर ये आरोप थोप दिए जाएँ?ताज़ा घटनाक्रम में दिल्ली के जामा मस्जिद ब्लास्ट में हिन्दू संगठनों के शामिल होने की तहकीकात की जा रही हैं.
ख़ास बात ये है कि ऐसा कई बार हुआ है कि मुस्लिम संगठनों अथवा मुस्लिम युवाओं को क्लीनचिट मिल गयी परन्तु मीडिया का एक वर्ग उसे इतनी कवरेज नहीं देता जितनी मुसलिम युवाओं की गिरफ़्तारी को दिया जाता है जिसके कारण आम लोगों के मन में ये सवाल पैदा होता है कि सरे आतंकी मुसलमान ही क्यों होते हैं?

Tuesday, October 11, 2011

JAG JEET

गजल सम्राट जगजीत सिंह का आज चंदनवाड़ी में अंतिम संस्‍कार कर दिया गया। ब्रेन हैमरेज के चलते करीब 15 दिन अस्‍तपाल में रहने के बाद सोमवार (10 अक्‍टूबर) को उनका निधन हो गया था। लेकिन बताया जाता है कि यह उनके निधन का तात्‍कालिक कारण था। असल में उनका निधन उस दर्द के चलते हुआ, जो उन्‍हें जवान बेटे की मौत के बाद मिला था।
मशहूर गायिका आशा भोंसले के मुताबिक जगजीत कभी भी लोगों के साथ अपना दुख नहीं बांटते थे और न ही लोगों के सामने उसे जाहिर होने देते थे। वह याद करती हैं कि जब उनके बेटे के निधन के बाद उन्‍हें सांत्‍वना देने गई थीं, तब उन्‍होंने कहा था कि इस बारे (बेटे की मौत) में बात नहीं करें। बकौल आशा, वह सारा गम अपने सीने में दबा कर रखते थे और शायद इसका उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा।

1990 में जगजीत और चित्रा के बेटे विवेक की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी। उसके बाद जगजीत को जुबां पर गीत लाने में छह महीने लग गए थे और चित्रा की आवाज तो खामोश ही हो गई थी। चित्रा दो साल पहले अपनी बेटी को भी खो चुकी हैं। उनकी पहली शादी से जन्‍मी मोनिका ने बांद्रा के अपने फ्लैट में खुदकुशी कर ली थी।

जगजीत शुरू से ही अंतरमुखी स्‍वभाव के थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि किशोरावस्था में वे एक लड़की पर फिदा हो गए थे। जालंधर में पढ़ाई के दौरान साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चेन टूटने या हवा निकलने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे। बहरहाल, उनका यह प्यार परवान नहीं चढ़ सका था।

जगजीत सिंह के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है कि कपड़े प्रेस करना उनकी हॉबी थी। उन्हें घुड़दौड़ का भी बहुत शौक था, उन्होंने घोड़े पाले भी थे। बचपन में फिल्मों के शौक के चलते अक्सर सिनेमाहॉल में गेटकीपर को घूस देकर घुसते थे।

चैरिटी के अनेक कार्यों में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। कई समाजसेवी संस्थाओं के सहायतार्थ गाया। ‘क्राई फॉर क्राई’ एलबम भी निकाला। मेहदी हसन के इलाज के लिए उन्होंने पाकिस्तान जाकर तीन लाख रुपए की मदद की थी। अपने संघर्ष के दिनों को याद कर नए कलाकारों की मदद के लिए तैयार रहते थे।


कहां तुम चले गए...

जन्म 8 फरवरी, 1941 को श्रीगंगानगर (राजस्थान) में। जन्म के समय पिता ने नाम दिया जगमोहन, पर अपने गुरु की सलाह पर बाद में कर दिया जगजीत।

पीडब्ल्यूडी में कार्यरत, पिता अमर सिंह पंजाब में दल्ला गांव के मूल निवासी थे और मां थीं बचन कौर। आर्थिक हालात ये थे कि बकौल जगजीत, ‘पतंग और रेडियो भी लक्जरी हुआ करते थे।’ शुरुआती साल बीकानेर में बीते, फिर श्रीगंगानगर लौटे।

पिता ने पं. छन्नूलाल शर्मा से संगीत की शिक्षा लेने भेजा। फिर छह साल उस्ताद जमाल खान से भी तालीम ली। कॉलेज के दिनों में एक रात चार हजार की भीड़ के सामने गा रहे थे कि बिजली चली गई। साउंड सिस्टम बैटरी के जरिए चालू रहा। जगजीत गाते रहे और क्या मजाल कि अंधेरे के बावजूद कोई उठकर गया हो!

स्नातक शिक्षा के लिए वे डीएवी जालंधर पहुंचे। यहां आकाशवाणी ने उन्हें ‘बी’ वर्ग के कलाकार की मान्यता दी। 1962 में जालंधर में ही उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के लिए स्वागत गीत रचा।

1961 में वे मुंबई पहुंचे। संघर्ष में पैसे खत्म हो गए थे। इसी हालत में ट्रेन के शौचालय में छुपकर बिना टिकट जालंधर गए।

मार्च 1965 में वे दुबारा मुंबई लौटे। सस्ती जगह पर रहते थे। खटमलों के साथ सोते थे। एक रात तो चूहे ने पैर काट खाया।

छोटी-मोटी महफिलों, घरेलू आयोजनों, फिल्मी पार्टियों, विज्ञापन जिंगल्स आदि में गाते थे। इसी बीच एचएमवी ने एक रिकॉर्ड के लिए उनसे दो गजलें गवाईं। इसी के कवर पर छपने वाले चित्र के लिए उन्होंने पहली बार दाढ़ी और पगड़ी हटाई।

एक जिंगल की रिकॉर्डिंग के दौरान अपनी भावी जीवन संगिनी चित्रा दत्ता से मिले। 19६९ में बिना धूम-धड़ाके, रिसेप्शन या उपहार के उनकी शादी हो गई। शादी पर खर्च हुए कुल जमा 30 रुपए।

एक कमरे के मकान में रहते थे। 1971 में पुत्र विवेक का जन्म। आर्थिक मजबूरियां ऐसी कि चित्रा ने 20 दिन के बच्चे को गोद में लेकर माइक पर जिंगल गाया। बावजूद इसके जगजीत महसूस करते थे कि तब वे ‘दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति’ थे।

1975 में एचएमवी से पहला एलपी ‘द अनफॉरगेटबल्स’ आया। इसकी रिकॉर्ड कामयाबी के बाद उन्होंने मुंबई में फ्लैट खरीदा।

1980 में फिल्म ‘साथ-साथ’ और ‘अर्थ’ में स्वर और संगीत दिया। 1987 में उनका ‘बियॉन्ड टाइम’ देश का पहला संपूर्ण डिजिटल सीडी एलबम बना। अगले साल टीवी सीरियल ‘मिर्जा गालिब’ में स्वर और संगीत दिया।

28 जुलाई, 1990 को एकमात्र पुत्र विवेक की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के बाद आध्यात्मिकता और दर्शन की ओर झुकाव बढ़ा। पहला एलबम आया ‘मन जीते जगजीत’ (गुरबानी)।

संगीत के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता कि 2001 में मां के अंतिम संस्कार के बाद उसी दोपहर कोलकाता में पूर्व निर्धारित कॉन्सर्ट के लिए पहुंचे।

2003 में पद्मभूषण सम्मान मिला।

नई दिशा (1999) व संवेदना (2002) के लिए प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के गीतों को सुर और संगीत दिया।


10 मई, 2007 को संसद के केंद्रीय कक्ष में प्रस्तुति दी।


लोकप्रिय एलबम
इकोज, द अनफॉरगेटबल्स, माइलस्टोन, कम अलाइव, द लेटेस्ट, बियॉन्ड टाइम, साउंड अफेयर, कहकशां, मिर्जा गालिब (सभी चित्रा सिंह के साथ) फेस टू फेस, लाइव विद जगजीत सिंह, मरासिम, मिराज, इनसाइट, क्राई फॉर क्राई, मां, सांवरा, हे राम।
यादगार गजलें
सरकती जाए है रुख से नकाब.., ये दौलत भी ले लो.., किया है प्यार जिसे.., मेरी जिंदगी किसी और की.., कोई चौदहवीं रात का चांद बनकर.., चराग आफताब गुम.., झूम के जब रिंदों ने पिला दी.., पहले तो अपने दिल की रजा जान जाइए.., मैं नशे में हूं.., अपने होंठों पर सजाना चाहता हूं.., जब किसी से कोई गिला रखना.., सच्ची बात कही थी मैंने.., कोई पास आया सवेरे-सवेरे...।
लोकप्रिय गीत
होंठों से छू लो तुम...(प्रेमगीत), झुकी झुकी सी नजर..(फिल्म अर्थ) तुमको देखा तो...(साथ-साथ), तुम इतना जो मुस्करा रहे हो...(अर्थ), फिर आज मुझे तुमको...(आज), हमसफर बनके हम...(आशियां), चिट्ठी न कोई संदेश...(दुश्मन), होशवालों को खबर क्या...(सरफरोश)।