Thursday, April 26, 2012

<अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावडो ले भाग्यो | नान्हो सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुःख जाग्यो || हूँ लड़यो घणो हूँ सहयो घणो मेवाडी मान बचावण नै , हूँ पाछ नहीं राखी रण में बेरयां रो खून बहावण में , जद याद करूँ हल्दी घाटी नैणा में रगत उतर आवै , सुख दुःख रो साथी चेतकडो सूती सी हूक जगा ज्यावै , पण आज बिलखतो देखूं हूं जद राज कंवर नै रोटी नै , तो क्षात्र - धर्म नै भूलूं हूं भूलूं हिंदवाणी चोटी नै महला में छप्पन भोग जका मनवार बिना करता कोनी, सोनै री थाल्याँ नीलम रै बाजोट बिना धरता कोनी , ऐ हाय जका करता पगल्या फूलां री कंवळी सेजां पर , बै आज रुले भूखा तिसिया हिंदवाणे सूरज रा टाबर , आ सोच हुई टूक तड़फ राणा री भीम बजर छाती , आँख्यां में आंसू भर बोल्या मै लिख स्यूं अकबर नै पाती, पण लिखूं कियां जद देखै है आडावल ऊँचो हियो लियां , चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराल भूत सी लियां छियां , मै झुकूं कियां ? है आण मनै कुळ रा केशरियां बानां री , मै बुझुं कियां ? हूं सेस लपट आजादी रै परवानां री , पण फेर अमर री सुण बुसक्याँ राणा रो हिवडो भर आयो , मै मानूं हूं दिल्लीस तनै समराट सनेसो कैवायो | राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो सपनूं सो सांचो , पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच न फिर बांच्यो , कै आज हिमालो पिघळ बह्यो कै आज हुयो सूरज सितळ , कै आज सेस रो सिर डोल्यो आ सोच हुयो समराट विकळ, बस दूत इशारों पा भाज्या पीथळ नै तुरत बुलावण नै , किरणां रो पीथळ आ पुग्यो आ सांचो भरम मिटावण नै , बीं वीर बांकू डै पीथळ नै रजपूती गौरव भारी हो , बो क्षात्र धरम रो नेमी हो राणा रो प्रेम पुजारी हो , बैरयां रै मन रो काँटों हो बीकाणू पूत खरारो हो , राठौड़ रणा में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो , आ बात पातस्या जाणे हो घावां पर लूण लगावण नै , पीथळ नै तुरत बुलायो हो राणा री हार बंचावण नै , म्हे बाँध लियो है पीथळ सुण पिंजरे में जंगळी शेर पकड़ , आ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़ ? मर डूब चलू भर पाणी में बस झुन्ठा गाल बजावै हो , पण टूट गयो बीं राणा रो तूं भाट बण्यो बिडदावै हो , मै आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है , अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है ? जद पीथळ कागद ले देखी राणा री सागी सैनाणी , निवै स्यूं धरती खसक गई आँख्यां में भर आयो पाणी , पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूंठी है , राणा री पाघ सदा ऊँची राणा री आण अटूटी है | ल्यो हुकुम हुवै तो लिख पूछूं राणा नै कागद रै खातर , लै पूछ भलांई पीथळ तूं आ बात सही है बोल्यो अकबर , म्हे आज सुणी है नाहरियो स्याला रै सागै सोवैलो , म्हे आज सुणी है सूरजडो बादळ री ओटा खोवैलो , म्हे आज सुणी है चातगडो धरती रो पाणी पिवैलो , म्हे आज सुणी है हाथीडो कूकर री जूणा जिवैलो , म्हे आज सुणी है थकां खसम अब रांड हुवैली रजपूती , म्हे आज सुणी है म्याना में तरवार रवैली अब सूती , तो म्हांरो हिवडो कांपै है मुछ्याँ री मोड़ मरोड़ गई , पीथळ नै राणा लिख भेजो आ बात कठे तक गिणा सही ? पीथळ रा आखर पढता ही राणा री आंख्यां लाल हुई , धिक्कार मनै हूं कायर हूं नाहर री एक दकाल हुई , हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं मेवाड़ धरा आजाद रवै , हूं घोर उजाडा में भटकूं पण मन में मां री याद रवै , हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चूकाऊँला, औ सीस पडे पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊँला, पीथळ के खिमता बादळ री जो रोकै सूर उगाळी नै , सिंघा री हाथळ सह लेवै वा कूख मिली कद स्याळी नै ? धरती रो पाणी पिवै इसी चातक री चूंच बणी कोनी , कूकर री जूणा जिवै इसी हाथी री बात सुणी कोनी , आं हाथां में तरवार थकां कुण रांड कवै है रजपूती ? म्याना रै बदले बैरयां री छात्याँ में रैवै ली सूती , मेवाड़ धधकतो अंगारों आंध्यां में चमचम चमकैलो, कड़खै री उठती तानां पर पग पग खांडो खड्कैलो , राखो थे मुछ्याँ एठ्योड़ी लोही री नदी बहा दयूंला , हूं अथक लडूंला अकबर स्यूं उज्ड्यो मेवाड़ बसा दयूंला , जद राणा रो सन्देश गयो पीथळ री छाती दूणी ही , हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनिया सूनी ही

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